Sanskrit Shlok | 51+ संस्कृत के श्लोक अर्थ सहित (2022)

Sanskrit Shlok in Hindi : दोस्तों ये बात तो आप भी बहुत अच्छे से जानते हैं, की संस्कृत भाषा का हम सभी लोगो के जीवन में अहम रोल है। जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य के जो भी संस्कार होते हैं। वे सभी संस्कृत भाषा में होते हैं। संस्कृत भाषा प्राचीन काल से चलती आ रही है। पुराण उपनिषद व ग्रंथ भी संस्कृत में ही लिखे गए हैं। इसे देव भाषा भी कहते हैं। इन सभी बातों से पता चलता है की संस्कृत का ज्ञान होना हमारे लिए आवश्यक है। प्राचीन समय में ऋषि मुनि ज्ञान बढ़ाने हेतु संस्कृत में श्लोक का प्रयोग करते थे। जिन्हे पढ़कर वास्तव में मन को बड़ी ही शांति मिलती है।

इसलिए दोस्तों आज की पोस्ट में हमने प्राचीन समय के कुछ चुनिंदा संस्कृत श्लोक और उनके अर्थ लिखे हैं। जिन्हे एक बार आपको जरूर पढ़ना चाहिए।

Sanskrit shlok

sanskrit shlok

तदा एव सफलता विषये चिन्तनं कुर्मः
यदा वयं सिद्धाः भवामः!!

अर्थ- तभी सफलता के विषय में चिंतन करे
जब आप कार्य करके उसे पूरा कर पाए,
वरना बिना कार्य किये सफलता के
बारे में सोचना व्यर्थ है!

निवर्तयत्यन्यजनं प्ररमादतः
स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते
गुणाति तत्त्वं हितमिछुरंगिनाम्
शिवार्थिनां यः स गुरु निर्गघते !!

अर्थ- जो दूसरों को प्रमाद (नशा, गलत काम )
करने से रोकते हैं, स्वयं निष्पाप रास्ते पर चलते हैं,
हित और कल्याण की कामना रखनेवाले को
तत्त्वबोध (यथार्थ ज्ञान का बोध) कराते हैं, उन्हें गुरु कहते हैं!

shlok in sanskrit image

ॐ न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते !!

अर्थ- इस सम्पूर्ण संसार में ज्ञान के
समान पवित्र और कुछ भी नहीं है।

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा !!

अर्थ- जिनका एक दन्त टुटा हुआ है
जिनका शरीर हाथी जैसा विशालकाय है
और तेज सूर्य की किरणों की तरह है
बलशाली है। उनसे मेरी प्रार्थना है
मेरे कार्यों के मध्य आने वाली
बाधाओं को सर्वदा दूर करें !

संस्कृत श्लोक अर्थ सहित

shlok in sanskrit dp

वक्रतुण्डं गजाननम् तव पदे अस्ति सुखं
गौरीपुत्रं विनायकं प्रथम वन्दे श्री गणेश !!

अर्थ- हे गजापति गजानन आपके चरणों
में ही समस्त सुख हैं। हे गौरीपुत्र विनायक श्री
गणेश आपकी की सबसे पहले हम पूजा करते हैं!

नमस्ते शारदे देवी काश्मीरपुरवासिनि
त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्यादानं च देहि मे !!

अर्थ- आपको नमस्कार माँ शारदा
( माँ सरस्वती ), हे देवी, हे कश्मीर
में रहने वाली में आपके सामने
प्रतिदिन प्रार्थना करता हूं,
कृपया करके मुझे ज्ञान का दान दें!

 sanskrit sholk  image

कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता ना भवति।

अर्थ- बेटा-बेटी (पुत्र-पुत्री) कुपुत्र हो सकते हैं
किन्तु माता कुमाता नहीं हो सकती
वो तो ममता की मूरत होती है!

मस्तके शशि धारणं असुर जलंधर मर्दनं
हलाहल पीत्वा यत् प्रभु उच्यते !!

अर्थ- मस्तक पर जो शशि (चंद्रमा)
धारण करता है जिसने जलन्धर
नमक दैत्य का वध किया तथा
हलाहल विष का पान कर जो
प्रभु नीलकंठ कहलाए !

संस्कृत श्लोक धर्म पर

shiv shlok in sanskrit

कण्ठे सर्प धारणा मस्तके चंद्र सुशोभितं
व्याघ्रस्य चर्म धारणं शिव शंकर त्रिलोचनं !!

अर्थ- गले में जिसने सर्प धारण किया है,
मस्तक पर चंद्रमा सजा हुआ है और
जो बाघ की खाल धारण (वस्त्र के रूप में)
करता है। वह त्रिलोचन
(तीन आँखों वाले ) शिव शंकर है।

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदती !!

अर्थ- मनुष्य के शरीर में रहने वाला
आलस्य हि उसका सबसे बडा शत्रु होता है
परिश्रम के अलावा हमारा दूसरा और
कोई मित्र नहीं होता है क्युकी
परिश्रम करने वाले कभी दुखी नहीं रहते!

वायूनां शोधकाः वृक्षाः रोगाणामपहारकाः
तस्माद् रोपणमेतेषां रक्षणं च हितावहम् !!

अर्थ- वृक्ष वायु को शुद्ध करते हैं
और रोगों को दूर भगाने में सहयोगी
होते हैं, इसलिए वृक्षों का रोपण और
रक्षण प्राणीमात्र के लिए हितकारी है!

तपः स्वधर्मवर्तित्वं मनसो दमनं दमः
क्षमा द्वन्द्वसहिष्णुत्वं हीरकार्यनिवर्तनम् !!

अर्थ- अपने धर्म ( कर्त्तव्य ) में लगे रहना ही
तपस्या है। मन को वश में रखना ही दमन है।
सुख-दुःख, लाभ-हानि में एकसमान
भाव रखना ही क्षमा है। न करने योग्य
कार्य को त्याग देना ही लज्जा है!

सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्, न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्
प्रियं च नानृतम् ब्रूयात्, एष धर्मः सनातन:!!

अर्थ- हमें सदा सत्य बोलना चाहिये,
प्रिय बोलना चाहिये, सत्य किन्तु
अप्रिय नहीं बोलना चाहिये।
प्रिय किन्तु असत्य नहीं बोलना
चाहिये यही सनातन धर्म है!

Easy sanskrit shlok

shlok in sanskrit on vidya

क्षणे तुष्टं क्षणे रुष्टं, तुष्टं रुष्टं क्षणे-क्षणे
इदृशानां जनानाम् तु प्रसादो अपि भयंकरः !!

अर्थ- जो लोग पल में तुष्ट (संतुष्ठ) और पल
में रुष्ट (दुखी, गुस्सा ) होते हैं। बार बार तुष्ट
रुष्ट होते हैं। ऐसे लोग बहुत खतरनाक होते हैं
ये भरोसे के लायक नहीं होते हैं!

न हि कश्चित विजानाति किं कस्य श्वो भविष्यति
अतः श्वः करणीयानी कुर्यादद्यैव बुद्धिमान !!

अर्थ- भविष्य का किसी को पता नहीं,
कल क्या होगा यह कोई नहीं जानता है।
इसलिए कल के करने योग्य कार्य को
आज कर लेने वाला ही बुद्धिमान है!

तुलसी श्रीसखि शिवे शुभे पापहारिणी पुण्य दे
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते !!

अर्थ- हे माता तुलसी ! लक्ष्मी माँ की सहेली!
हे पापहारिणी मुझे पुण्य दो !
दीपक के प्रकाश को मेरे पापों को दूर
करने दो, दीपक के प्रकाश को प्रणाम!

यच्छक्यं ग्रसितुं शस्तं ग्रस्तं परिणमेच्च यत्
हितं च परिणामे यत्तदाद्यं भूतिमिच्छता !!

अर्थ- जो वस्तु खाने योग्य है और
खाने पर आसानी से पच जाए और
इसका पाचन शरीर के लिए हितकारी हो
ऐश्वर्य की इच्छा करने वाले व्यक्ति को
ऐसी वस्तु का ही सेवन करना चाहिए!

सत्य-सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्मः सदाश्रितः
सत्यमूलनि सर्वाणि सत्यान्नास्ति परं पदम्!!

अर्थ- ईश्वर ही संसार में सत्य है
धर्म भी सत्य के ही आश्रित है
सत्य ही समस्त भव-
विभव का मूल है, सत्य से
बढ़कर और कुछ नहीं है!

नास्ति विद्यासमं चक्षुः नास्ति सत्यसमं तपः
नास्ति रागसमं दुःखं नास्ति त्यागसमं सुखम् !!

अर्थ- विद्या के समान आँख नहीं है,
सत्य के समान तप नहीं है,
राग के समान दुःख नहीं है, और
त्याग के समान कोई सुख नहीं है!

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्धर्मो यशो बलम् !!

अर्थ- जो सदा नम्र, सुशील, विद्वान् और
वृद्धों की सेवा करता है उसकी आयु,
विद्या, कृति और बल इन चारों में वृद्धि होती है!

वाणी रसवती यस्य, यस्य श्रमवती क्रिया
लक्ष्मी : दानवती यस्य, सफलं तस्य जीवितं !!

अर्थ- जिस मनुष्य की वाणी (बोली) मीठी है,
जिसका कार्य परिश्रम (मेहनत) से युक्त है,
जिसका धन, दान करने में प्रयुक्त होता है,
उसका जीवन ही सफल है!

Sanskrit shlokas with hindi meaning

sanskrit shlok with meaning

चिंतायाश्च चितायाश्च बिंदुमात्रं विशिष्यते
चिता दहति निर्जीवं चिन्ता दहति जीवनम् !!

अर्थ- चिंता और चिता में केवल एक
बिंदु मात्र का फर्क होता है, चीता निर्जीव
(जिसमे जीवन नहीं है) को जलाती है
जबकि चिंता जीवन को जलाती है!

ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः
गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः !!

अर्थ- इस श्लोक में कहा गया है
की गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है,
गुरु ही देवो के देव महादेव (शंकर) है
और गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। इसलिए
मैं गुरु के श्री चरणों में प्रणाम करता हूँ।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देव देव !!

अर्थ- हे प्रभु! तुम मेरी माँ हो,
तुम मेरे पिता हो, तुम्ही मेरे
भाई बंधू हो सखा हो
तुम ही मेरा ज्ञान हो और हे हरी
भगवान तुम ही सर्वत्र देवता भी हो।

कश्चित् कस्यचिन्मित्रं,
न कश्चित् कस्यचित् रिपु:
अर्थतस्तु निबध्यन्ते,
मित्राणि रिपवस्तथा !!

अर्थ- इस संसार में न कोई
किसी का मित्र (दोस्त) है
न कोई किसी का शत्रु (दुश्मन) है
कार्यवश ही लोग एक दूसरे के
मित्र और शत्रु बनते हैं!

संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

देवो रुष्टे गुरुस्त्राता गुरो रुष्टे न कश्चन:
गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता न संशयः !!

अर्थ- यदि भाग्य ख़राब हो या रुठ जाए
तो गुरु सदैव रक्षा करते हैं।
यदि गुरु रुठ जाए तो कोई रक्षा
नहीं करता। इसलिए इसमें कोई
संदेह नहीं है की गुरु ही सच्चा रक्षक है,
गुरु ही रक्षक है, गुरु ही रक्षक है!

ते पुत्रा ये पितुभक्ता: स: पिता यस्तु पोषक:
तन्मित्र यत्र विश्वास: सा भार्या या निर्वती !!

अर्थ– बेटा वही होता है जो
अपने पिता का भक्त हो,
पिता वही है जो पोषक हैं
मित्र वही है जो विश्वास योग्य है और
पत्नी वही है जो हृदय को सुख देती है!

आचार्यात्पादमादत्ते पादं शिष्यः स्वमेधया
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचारिभिः !!

अर्थ- शिष्य अपने जीवन का एक
भाग अपने आचार्य से सीखता है ,
एक भाग अपनी बुद्धि से सीखता है
एक भाग समय से सीखता है तथा एक
भाग वह अपने सहपाठियों से सीखता है!

शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते !!

अर्थ- मैं दीपक के प्रकाश को प्रणाम
करता हूं जो शुभता, स्वास्थ्य और
समृद्धि लाता है, जो अनैतिक
भावनाओं को नष्ट करता है बार-बार
दीपक के प्रकाश को प्रणाम करता हूं!

न गृहं गृहमित्याहुः गृहणी गृहमुच्यते
गृहं हि गृहिणीहीनं अरण्यं सदृशं मतम् !!

अर्थ- घर को बिना गृहणी के घर नहीं
कहा जा सकता। बिना स्त्री के घर
जंगल के समान है। गृहणी से ही घर है।
इसलिए घर में गृहणी का होना आवश्यक होता है!

Shlok in sanskrit

sanskrit shlok of saraswati

कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती
करमूले तु गोविन्द प्रभाते करदर्शनम्!!

अर्थ- इस श्लोक में यह बताया गया है
की हमारे हाथो के अग्र भाग में माँ लक्ष्मी
निवास करती है, मध्य में माँ सरस्वती और
मूल भाग में स्वयं भगवन नारायण (विष्णु)
जी विराजते हैं। इसलिए सुबह
उठते ही अपने हाथों का करें करे!

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय
लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं
नागाननाथ श्रुतियज्ञविभूषिताय
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते !!

अर्थ- विघ्नेश्वर, वर देनेवाले, देवताओं के प्रिय,
लम्बोदर, कलाओं से परिपूर्ण, जगत् का
हित करनेवाले, गज के समान मुखवाले
और वेद तथा यज्ञ से विभूषित
पार्वतीपुत्र को नमस्कार है,
हे गणनाथ ! आपको नमस्कार है!

अमेयाय च हेरम्ब परशुधारकाय ते
मूषक वाहनायैव विश्वेशाय नमो नमः!!

अर्थ- हे हेरम्ब ! आपको किन्ही प्रमाणों
द्वारा मापा नहीं जा सकता, आप परशु
धारण करने वाले हैं, आपका वाहन मूषक है
आप विश्वेश्वर को बारम्बार नमस्कार है!

आदि देव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर:
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते !!

अर्थ- हे आदिदेव सूर्य (भास्कर)
आपको मेरा प्रणाम, हे दिवाकर
आप मुझ पर प्रसन्न हो, हे दिवाकर
आपको मेरा नमस्कार है,
हे प्रभाकर आपको मेरा नमस्कार है!

जरा रूपं हरति, धैर्यमाशा,
मॄत्यु: धर्मचर्यामसूया !!

अर्थ- वृद्धावस्था एक ऐसी अवस्था होती है
जिसमे पहुँचने के बाद वह
सभी मनुष्य की सुंदरता, धैर्य आशा (इच्छा)
मृत्यु, धर्म का आचरण, सुखदुःख, काम,
अभिमान, पद-प्रतिष्ठा सब को
हर (छीन, नाश) लेती है!

आलस्य कुतो विद्या अविध्स्य कुतों धनम
अधनस्य कुतो मित्रम अमित्रस्य कूट: सुखम !!

अर्थ– आलसी व्यक्ति के लिए ज्ञान कहाँ हैं,
अज्ञानी मुर्ख के लिए धन (पैसा) कहाँ हैं,
गरीब के लिए मित्र (दोस् ) कहाँ होते हैं और
दोस्तों के बिना कोई कैसे खुश रह सकता हैं!

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम
भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात !!

अर्थ- हम उस पूजनीय, ज्ञान का भंडार
ईश्वर का ध्यान करते हैं, जिसने इस
संसार को उत्पन्न किया है। जो हमें
पापों और अज्ञानता से दूर रखता है।
वह ईश्वर हमें हमें सत्य का मार्ग दिखाए
और इस मार्ग पर चलने का आशिर्वाद दे!

उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा: !!

अर्थ- जिस प्रकार सोये हुए शेर के मुँह में
मृग अपने आप प्रवेश नहीं करते बल्कि
शेर को मेहनत करनी पड़ती है। ठीक
उसी प्रकार मेहनत (उद्यम ) करके हि
कार्य सफल होते हैं, नाकि
इच्छा से जाहिर करने से!

सर्वद्रव्येषु विद्यैव द्रव्यमाहुरनुत्तमम्
अहार्यत्वादनर्ध्यत्वादक्षयत्वाच्च सर्वदा !!

अर्थ- सब द्रव्यों में विद्यारुपी द्रव्य सर्वोत्तम है,
क्योंकि वह किसी से हारा नहीं जा सकता
उसका मूल्य नहीं हो सकता और
उसका कभी नाश नहीं होता ।

प्रथिव्यां त्रिणी रत्नानी जल्मन्न्म सुभाषितं
मुढे: पाधानखंडेषु रत्नसंज्ञा विधीयते !!

अर्थ- इस धरती पर तीन रत्न हैं जल,
अन्न और शुभ वाणी पर मुर्ख लोग
पत्थर के टुकड़ो को रत्न की संज्ञा देते हैं!

(Source : Kailash Kher)

Final words on Sanskrit shlok


दोस्तों आशा करते हैं की आपको हमारे द्वारा लिखे गए यह sanskrit shlok अच्छे लगे होंगे। दोस्तों इसे अन्य लोगो के साथ जरूर शेयर करना और अगर आपके पास ही कोई संस्कृत श्लोक हो तो कमेंट करके जरूर बताएं। धन्यवाद दोस्तों।

संस्कृत में पक्षियों के नाम
संस्कृत में फलों के नाम
फूलों के नाम संस्कृत में
संस्कृत में जानवरों के नाम
भाषा की परिभाषा और भेद